स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) के दूसरे चरण को शुरू हुए नौ दिन बीत चुके हैं और चुनाव आयोग के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अब तक करीब 42 करोड़ यानी 82.71% फॉर्म मतदाताओं तक पहुंच चुके हैं। इन राज्यों में कुल 50.99 करोड़ वोटर हैं। विरोध के बावजूद पश्चिम बंगाल में 93% फॉर्म बांटे जा चुके हैं, जो गुजरात के 94% और राजस्थान के 86% के करीब है। यह तस्वीर बताती है कि जहां एक ओर कुछ राज्यों में काम तेजी से आगे बढ़ रहा है, वहीं कई जगहों पर बीएलओ और मतदाताओं दोनों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
बंगाल में SIR को लेकर सबसे ज्यादा बहस छिड़ी हुई है। तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि इस मुद्दे पर राज्य में हिंसा हुई और 18 लोगों की मौत हुई है। वहीं पार्टी का आरोप है कि चुनाव आयोग ने बूथ लेवल एजेंट (BLA) की नियुक्ति के नियमों में बदलाव करके प्रक्रिया को और पेचीदा कर दिया है। इसके उलट आयोग का दावा है कि बंगाल में काम उल्लेखनीय गति से हो रहा है।
कई राज्यों से सामने आई जमीनी चुनौतियाँ
राजस्थान में बीएलओ फॉर्म तो छोड़ रहे हैं, लेकिन कई मतदाता शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा कि फॉर्म कैसे भरें। कई परिवारों में 2002 की पुरानी वोटर सूची में नाम नहीं हैं, तो उनसे माता-पिता के वोटर आईडी मांगे जा रहे हैं, जो कई के पास उपलब्ध नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल में बीएलओ पर इतना दबाव है कि उन्हें रात 8 बजे तक फील्ड में रहना पड़ रहा है। कई लोगों के पते बदल जाने की वजह से फोन नंबर ढूंढ़ना, संपर्क बनाना और फॉर्म वापस लेना बेहद समय लेने वाला काम बन गया है। ट्रांसजेंडर समुदाय को भी दस्तावेजों में पहचान के विकल्प न होने से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
छत्तीसगढ़ में दूसरे राज्यों से ब्याहकर आई महिलाएं सबसे बड़ी चुनौती हैं। बीएलओ के एप में दूसरे राज्यों की वोटर लिस्ट आसानी से नहीं खुल रही, जिसकी वजह से नाम जोड़ना मुश्किल हो रहा है। बड़ी संख्या में नौजवान और मजदूर अन्य शहरों में नौकरी करते हैं, जिससे उनसे संपर्क बनाना कठिन हो गया है।
मध्यप्रदेश में मकान बदलने की समस्या सबसे बड़ी है। एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग बूथों में सूचीबद्ध हैं। पुराने एड्रेस अपडेट न होने से डुप्लीकेट और मिसिंग वोटर जैसी दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। साथ ही, जिन बीएलओ का नाम खुद बूथ की सूची में नहीं था, उन्हें बाहर कर दिया गया है—नए बीएलओ ट्रेनिंग के बावजूद एप चलाने में दिक्कत झेल रहे हैं।
गुजरात में बीएलओ को कई जगह अपने परिजन या परिचितों की मदद लेनी पड़ रही है। यहां कई मतदाताओं के नाम अलग-अलग राज्यों की लिस्ट में दर्ज हैं, जिससे मिलान और छंटाई की प्रक्रिया और भी समय लेने वाली हो गई है।
तमिलनाडु में खासकर चेन्नई में करीब एक लाख ऐसे लोग सामने आए हैं जिन्होंने पता बदल लिया है, लेकिन वोटर लिस्ट अपडेट नहीं कराई। इससे उन्हें नाम कटने का डर सता रहा है। बीएलओ का कहना है कि फॉर्म भरवाना और वापस लेना वहां काफी मुश्किल हो रहा है।
केरल में सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता बन गई है। कोट्टायम में 6 नवंबर को एक व्यक्ति ने बीएलओ पर कुत्ता छोड़ दिया था, जिससे अधिकारी घायल हो गया। इसके बाद से बीएलओ रात में भी दस्तक दे रहे हैं, लेकिन अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए।
SIR प्रक्रिया कब तक चलेगी?
BLO ने 4 नवंबर से घर–घर जाकर फॉर्म बांटने शुरू किए हैं। 28 अक्टूबर से 3 नवंबर तक ट्रेनिंग चली और यह पूरी प्रक्रिया 7 फरवरी तक चलेगी। SIR के दौरान नए वोटर रजिस्टर होंगे, गलतियां सुधारी जाएंगी, डुप्लीकेट नाम हटेंगे और पुराने, गलत या मृत मतदाताओं के नामों को लिस्ट से बाहर किया जाएगा।
कुल 12 राज्यों में SIR चल रहा है—अंडमान निकोबार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, लक्षद्वीप, मध्यप्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल। इसमें 5.33 लाख बीएलओ और 7 लाख से अधिक बीएलए तैनात किए जा रहे हैं।
मतदाता के लिए क्या नियम?
अगर आपका नाम दो जगह दर्ज है, तो आपको एक जगह से इसे कटवाना होगा। नाम नहीं है, तो फॉर्म-6 भरकर नए नाम के लिए आवेदन करना होगा। दस्तावेज़ के तौर पर पेंशन कार्ड, पासपोर्ट, 10वीं मार्कशीट, जाति प्रमाणपत्र, परिवार रजिस्टर, मकान/जमीन आवंटन पत्र, आधार और अन्य मान्य कागजात स्वीकार किए जाते हैं। आधार को केवल पहचान के प्रमाण के तौर पर माना जाएगा, नागरिकता साबित करने के लिए नहीं।
अगर ड्राफ्ट लिस्ट में आपका नाम कट गया, तो एक महीने के भीतर अपील का अधिकार मिलता है। जरूरत पड़े तो DM और फिर CEO तक अपील की जा सकती है।
SIR का मकसद क्या है?
पिछले 21 साल से यह प्रक्रिया नहीं हुई थी। इस लंबे समय में देशभर में लोगों का माइग्रेशन हुआ, कई जगह डुप्लीकेट एंट्री बनीं, कहीं मृत मतदाताओं के नाम हटाने छूट गए, और कुछ विदेशी नागरिकों के नाम भी सूची में आ गए। SIR का उद्देश्य है कि कोई भी योग्य मतदाता न छूटे और कोई भी अयोग्य नाम सूची में न रह जाए।
देश के सबसे बड़े वोटर रिवीजन अभियान में अब कॉम्प्लेक्सिटी सामने आने लगी है—लेकिन आयोग का दावा है कि काम समय पर पूरा कर लिया जाएगा।