भारत जिस तेज़ी से डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन की ओर बढ़ रहा है, उसी रफ्तार से साइबर खतरों का दायरा भी चौड़ा होता जा रहा है। PwC की एक नई रिपोर्ट ने इस तेजी के बीच एक गंभीर चेतावनी दी है—क्वांटम कंप्यूटिंग आने वाले वर्षों में देश की साइबर सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकती है। रिपोर्ट का कहना है कि क्वांटम तकनीकें पारंपरिक एन्क्रिप्शन सिस्टम्स को कुछ ही सेकंड में तोड़ सकती हैं, जिससे सरकारी डेटा से लेकर वित्तीय संस्थानों, स्वास्थ्य सेवाओं और बड़ी निजी कंपनियों तक सबकी सुरक्षा दीवारें एक झटके में ढह सकती हैं।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि जिन संगठनों के पास भारी मात्रा में संवेदनशील और गोपनीय डेटा मौजूद है, उनके लिए अब क्वांटम–रेजिलिएंट सिक्योरिटी सिर्फ विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन चुकी है। यह खतरा भविष्य का कोई दूर का संकट नहीं है, बल्कि डिजिटल दुनिया के वर्तमान विस्तार को देखते हुए यह चुनौती अब दरवाजे पर दस्तक दे रही है।
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम्स का विस्तार जितनी तेजी से हो रहा है, उसी गति से डेटा संप्रभुता और साइबर रेजिलिएंस की मांग भी बढ़ती जा रही है। PwC के अनुसार भारत के संगठनों को केवल जागरूकता की औपचारिकता निभाने से आगे बढ़कर क्वांटम युग के लिए ठोस तैयारी करनी होगी। पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी को बोर्ड-लेवल पर प्राथमिकता देनी होगी, क्वांटम जोखिमों पर विशेषज्ञता विकसित करनी होगी और सुरक्षा सिस्टम्स के अपग्रेड के लिए बहु-वर्षीय रोडमैप तैयार करना होगा।
रिपोर्ट साफ कहती है कि समय जितनी तेजी से बदल रहा है, सुरक्षा के पारंपरिक मॉडल उतनी ही तेजी से अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। आने वाले समय में जो संगठन क्वांटम–सेफ तकनीकें अपनाने में असफल होंगे, वे न केवल हैकिंग के गंभीर खतरे का सामना करेंगे बल्कि अपनी विश्वसनीयता और कारोबारी स्थिरता भी खो सकते हैं। इसलिए अभी से उठाए गए कदम ही भविष्य के साइबर अंधकार से बचा सकते हैं।