छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कड़ी फटकार लगाते हुए साफ सवाल किया कि आखिर ऐसी कौन-सी जांच अभी बाकी है, जो दस महीने से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी पूरी नहीं हो पाई। अदालत ने गंभीर नाराजगी जताते हुए ED से पूछा कि जब आप आरोपी को जमानत न देने की दलील देते हैं, तो फिर जांच लंबी क्यों खिंच रही है और किस विशेष जांच के आधार पर आप इतने महीने तक गिरफ्तारी को उचित ठहरा रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि जांच अधिकारी अपना व्यक्तिगत शपथपत्र दाखिल करें, जिसमें विस्तार से यह बताया जाए कि पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा के खिलाफ कौन-कौन से बिंदुओं पर जांच लंबित है और उसे पूरा करने में कितना समय लगेगा। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि ED की यह जिम्मेदारी है कि वह कोर्ट के सामने स्पष्ट तस्वीर पेश करे, न कि अनिश्चितता बनाकर रखे।
कवासी लखमा को ED ने 15 जनवरी 2025 को गिरफ्तार किया था, इसके कुछ समय बाद EOW ने भी उन्हें हिरासत में लिया। दस महीने से जेल में बंद लखमा की स्थिति लगातार खराब बताई जा रही है, जिस पर कांग्रेस ने उनके स्वास्थ्य को लेकर तत्काल उपचार की मांग की है। ED का आरोप है कि लखमा शराब सिंडिकेट में एक प्रमुख भूमिका निभाते थे और पूरे नेटवर्क का संचालन उनके निर्देशों पर चलता था। एजेंसी का दावा है कि शराब नीति में बदलाव, FL-10 लाइसेंस की शुरुआत और कमीशन आधारित अवैध तंत्र को सक्रिय रखने में लखमा की सहमति शामिल थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस सुनवाई के दौरान आबकारी विभाग के कुछ अधिकारियों को पहले दी गई अंतरिम गिरफ्तारी सुरक्षा को भी स्थायी कर दिया। यह फैसला जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनाया। इस संदर्भ में कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक जांच तार्किक रूप से आगे नहीं बढ़ती, तब तक अधिकारियों को अनावश्यक गिरफ्तारी से सुरक्षा मिलनी चाहिए।
ED की ओर से कोर्ट में यह भी कहा गया था कि तीन साल तक चले इस शराब घोटाले में भारी-भरकम कमीशन की उगाही हुई। एजेंसी के अनुसार लखमा को हर महीने लगभग दो करोड़ रुपए मिलते थे और तीन साल में उनके हाथ 72 करोड़ रुपए तक पहुंचे। इन पैसों का उपयोग कथित रूप से उनके बेटे के घर के निर्माण और कांग्रेस भवन सुकमा की बिल्डिंग में हुआ। ED यह भी दावा करती है कि इस घोटाले से सरकारी खजाने को 2,100 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ और सिंडिकेट से जुड़े नेता, अधिकारी और कारोबारी अवैध कमाई में लिप्त थे।
छत्तीसगढ़ शराब घोटाला वास्तव में तीन स्तर वाली अवैध प्रणाली पर आधारित था—डिस्टलरी कमीशन, नकली होलोग्राम वाली शराब की बिक्री और सप्लाई जोन में हेरफेर कर उगाही। ED का कहना है कि IAS अनिल टुटेजा, आबकारी विभाग के MD एपी त्रिपाठी और कारोबारी अनवर ढेबर इस सिंडिकेट के प्रमुख संचालक थे। नकली होलोग्राम वाली शराब की सप्लाई से लेकर कमीशन आधारित अवैध रकम वसूलने तक, यह पूरा नेटवर्क कई जिलों में फैला था। जांच में पाया गया कि 40 लाख से अधिक पेटी शराब बिना रिकॉर्ड के बेची गई, जिससे तंत्र को भारी फायदा पहुंचा।
अब सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बाद ED पर यह दबाव बढ़ गया है कि वह कवासी लखमा की गिरफ्तारी से जुड़ी जांच को स्पष्ट रूप से परिभाषित करे और अदालत को बताए कि आगे की प्रक्रिया में कितना समय लगेगा। अदालत की यह कड़ी भाषा इस बात का संकेत है कि लंबी जांच और अनिश्चितता को वह और बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है।