लखनऊ में बिना लाइसेंस डॉग रखने पर कड़ा एक्शन—पेट ओनर्स के लिए जरूरी जानकारी, लाइसेंस क्यों जरूरी और कैसे बनता है पूरा प्रोसेस।
लखनऊ नगर निगम ने बिना लाइसेंस पालतू कुत्ता रखने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है। हाल ही में निगम की टीम ने शहर के कई इलाकों में अचानक जांच अभियान चलाया और जिन घरों में कुत्तों का लाइसेंस नहीं मिला, वहां मौके पर ही 24 हजार रुपये तक के जुर्माने वसूले गए। इस अभियान में प्रवर्तन दल, डॉग कैचिंग स्क्वॉड और नगर निगम के अन्य कर्मचारी भी शामिल थे।
भारत के कई शहरों में पालतू जानवरों—खासतौर पर कुत्तों—के लिए लाइसेंस बनवाना कानूनी रूप से जरूरी है। यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि जिम्मेदार पेट ओनरशिप का हिस्सा है। ‘डॉगस्टर’ और स्टेटिस्टा के डेटा बताते हैं कि 2023 में देश में करीब 3.1 करोड़ पालतू कुत्ते और लगभग 24.4 लाख बिल्लियां थीं। अनुमान है कि 2026 तक यह संख्या और तेजी से बढ़ेगी, ऐसे में पेट लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को जानना पहले से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है।
नगर निगम के एनिमल वेलफेयर ऑफिसर डॉ. अभिनव वर्मा बताते हैं कि पेट लाइसेंस असल में आपके पालतू जानवर की कानूनी पहचान है। इससे नगर निगम के रिकॉर्ड में आपके पेट का पूरा विवरण दर्ज रहता है—Vaccination, Breed, Ownership और Address। यदि कोई कुत्ता खो जाए, तो लाइसेंस पर दिया गया टैग नंबर उसके मालिक तक पहुंचने का सबसे आसान तरीका बन जाता है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु और लखनऊ जैसे बड़े शहरों में यह नियम काफी सख्ती से लागू होता है। कहीं-कहीं लाइसेंस न होने पर पालतू को जब्त तक किया जा सकता है।
लाइसेंसिंग फिलहाल कुत्तों के लिए सबसे जरूरी है, हालांकि लखनऊ जैसे कुछ नगर निगम बिल्लियों पर भी यही नियम लागू कर चुके हैं। लाइसेंस बनवाने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं है, लेकिन रेबीज टीकाकरण अनिवार्य है। आमतौर पर पपी को तीन महीने की उम्र के आसपास रेबीज का पहला टीका लगता है और उसी के बाद लाइसेंस के लिए आवेदन किया जा सकता है।
लाइसेंस बनवाने के लिए कुछ निश्चित दस्तावेज़ जमा करने होते हैं—इनमें पेट का वैक्सिनेशन रिकॉर्ड, आपके पहचान पत्र की कॉपी, निवास प्रमाण, फोटो और डॉक्टर द्वारा जारी हेल्थ सर्टिफिकेट शामिल होते हैं। आवेदन की प्रक्रिया नगर निगम के कार्यालय में जाकर, उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर या कुछ नामित पेट क्लीनिकों के माध्यम से भी पूरी की जा सकती है। ऑनलाइन प्रक्रिया में फॉर्म भरने, दस्तावेज़ अपलोड करने और निर्धारित शुल्क जमा करने के बाद लाइसेंस जारी कर दिया जाता है, जबकि ऑफलाइन में आवेदक को दस्तावेज़ों के साथ फॉर्म जमा करना होता है।
लाइसेंस एक वर्ष के लिए वैध होता है और इसे हर साल रिन्यू कराना पड़ता है। रिन्यूअल के समय यह साबित करना होता है कि कुत्ते को वार्षिक रेबीज बूस्टर शॉट लग चुका है। लाइसेंस की फीस हर शहर में अलग-अलग हो सकती है और कुत्ते की नस्ल के आधार पर भी यह बदलती है। कई शहर नसबंदी वाले कुत्तों के लिए शुल्क में छूट भी देते हैं। आमतौर पर यह राशि 200 रुपये से 1,000 रुपये के बीच रहती है।
अगर कभी कुत्ता या बिल्ली खो जाए, तो लाइसेंस का यहीं सबसे बड़ा काम सामने आता है। लाइसेंस के साथ मिलने वाला मेटल टैग कॉलर पर लगाया जाता है, जिसमें एक यूनिक नंबर होता है। यदि कोई व्यक्ति आपका पालतू ढूंढ लेता है, तो नगर निगम से उस नंबर के आधार पर आसानी से मालिक की जानकारी निकाली जा सकती है—इससे पालतू के सुरक्षित घर लौटने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
कुछ परिस्थितियों में नगर निगम लाइसेंस रद्द भी कर सकता है, जैसे लगातार शिकायतें मिलना, अप्रशिक्षित या खतरनाक व्यवहार, नियमों का उल्लंघन या वैक्सिनेशन न कराना। वहीं, अगर आप किसी अन्य शहर में शिफ्ट होते हैं तो पुराना लाइसेंस अपने आप मान्य नहीं रहता। नए शहर के नगर निगम से नया लाइसेंस बनवाना अनिवार्य होता है, जिसके लिए नए पते का प्रमाण और वैक्सिनेशन रिकॉर्ड जमा करना होता है।
लखनऊ में छापेमारी के बाद यह साफ हो गया है कि भविष्य में पेट लाइसेंसिंग नियम और कड़े हो सकते हैं। इसलिए हर पेट ओनर के लिए यह समझना बेहद जरूरी है कि लाइसेंस सिर्फ कानून का पालन नहीं, बल्कि अपने पालतू की सुरक्षा और जिम्मेदारी का प्रतीक भी है।