पढ़ाई से ज्यादा गैर-शैक्षणिक काम… अब कुत्तों की निगरानी का नया बोझ—शिक्षकों ने जताया कड़ा विरोध।
रायपुर में जारी एक नए सरकारी आदेश ने प्रदेशभर के शिक्षकों को चौंका दिया है। लोक शिक्षण संचालनालय ने राज्य के सभी स्कूलों को निर्देश दिया है कि अब शिक्षक न केवल बच्चों की पढ़ाई और स्कूल की गतिविधियों पर ध्यान दें, बल्कि स्कूल परिसर और उसके आसपास घूमने वाले आवारा कुत्तों की निगरानी भी करें। आदेश के अनुसार, स्कूलों में नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे, जो कुत्तों की मौजूदगी की रिपोर्ट स्थानीय निकायों—ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत या नगर निगम के डॉग कैचर दल को देंगे। इसके बाद प्रशासनिक स्तर पर कुत्तों को पकड़ने या उनकी एंट्री रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे।
इस आदेश के सामने आते ही प्रदेशभर के शिक्षकों में नाराजगी फैल गई। शिक्षकों का कहना है कि उन पर पहले से ही बच्चों की पढ़ाई के अलावा कई गैर-शैक्षणिक जिम्मेदारियां डाली जाती हैं—जैसे सर्वे, चुनाव ड्यूटी, डेटा एंट्री, योजनाओं का अपडेट और कई अन्य प्रशासनिक कार्य। ऐसे में अब आवारा कुत्तों की निगरानी का नया बोझ डालना शिक्षकों के कामकाज को और जटिल बना देगा।
शालेय शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष वीरेंद्र दुबे ने इसे पूरी तरह अव्यावहारिक बताया। उनका कहना है कि यह जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है, जिसे कुत्तों को पकड़ने और नियंत्रित करने में विशेषज्ञता होती है। शिक्षकों का काम बच्चों को पढ़ाना है, न कि स्कूल परिसर में जानवरों की निगरानी करना। दुबे ने स्पष्ट कहा कि शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में लगातार उलझाया जा रहा है और यह निर्णय उस समस्या को और बढ़ाता है।
प्रदेश के कई जिलों में आदेश को लेकर चर्चा तेज है। शिक्षकों का तर्क है कि कुत्तों की निगरानी जोखिम भरा भी हो सकता है—क्योंकि कई बार अचानक हमला, बच्चे-कर्मचारियों पर भौंकना या काटने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। ऐसे में बिना किसी ट्रेनिंग के शिक्षकों पर ऐसा जिम्मा डालना उचित नहीं है।
सरकारी आदेश का उद्देश्य भले ही स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना हो, लेकिन जिस तरीके से यह जिम्मेदारी शिक्षकों पर डाल दी गई है, उस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। फिलहाल शिक्षक संघ आदेश को वापस लेने की मांग कर रहा है और इसे पूरी तरह गलत और गैर-व्यावहारिक बता रहा है।