अदालत ने कहा—साक्ष्य अपर्याप्त, पोस्ट को आपराधिक इरादे से जोड़ना उचित नहीं; अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आया मामला।
मद्रास हाईकोर्ट ने टीवीके (TVK) नेता आधव अर्जुन के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए साफ कर दिया कि कानून तभी लागू होता है जब उसके समर्थन में पर्याप्त और ठोस साक्ष्य मौजूद हों। अक्टूबर में किए गए एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर शुरू हुआ विवाद अब अदालत के फैसले के बाद शांत हो गया है। यह वही पोस्ट था जिसने राज्य सरकार के खिलाफ कथित तौर पर नेपाल जैसी विद्रोह-शैली की कार्रवाई का संकेत दिया था और जिसकी आलोचना के बाद इसे हटा दिया गया था।
घटना के बाद तमिलनाडु पुलिस ने आधव अर्जुन पर आरोप लगाया कि उनकी टिप्पणी हिंसा को भड़काने वाली हो सकती थी और इससे राज्य की कानून-व्यवस्था प्रभावित हो सकती थी। इसी आधार पर 29 अक्टूबर को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। मामला अदालत पहुंचा तो जस्टिस जगदीश चंद्रा की बेंच ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि पोस्ट के पीछे किसी आपराधिक इरादे का प्रमाण नहीं मिलता और इसे गलत अर्थों में लिया गया हो सकता है।
अर्जुन की ओर से दायर याचिका में यह तर्क दिया गया था कि उनका उद्देश्य किसी भी तरह की हिंसा या अस्थिरता फैलाना नहीं था, बल्कि टिप्पणी को संदर्भ से हटाकर देखा गया। अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद माना कि उपलब्ध सामग्री एफआईआर को जारी रखने के लिए पर्याप्त नहीं है और सोशल मीडिया पर व्यक्त विचारों को सीधे आपराधिक मंशा से जोड़ देना उचित नहीं माना जा सकता, जब तक इसके लिए ठोस साक्ष्य न हों।
इस फैसले के साथ न केवल अर्जुन के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द हुई, बल्कि इस मामले से जुड़ी सभी कानूनी कार्रवाई भी समाप्त हो गई। अदालत का यह कदम एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का मूल हिस्सा है, और किसी भी टिप्पणी को अपराध मानने से पहले उसके इरादे और परिस्थितियों पर सावधानी से विचार करना आवश्यक है।