बच्चों का स्वभाव केवल उनके जीन पर निर्भर नहीं करता, बल्कि घर का माहौल, पैरेंट्स का व्यवहार और रोज़मर्रा की आदतें उनके व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित करती हैं। कई बार माता-पिता अनजाने में ऐसी गलतियां कर देते हैं, जो बच्चे में गुस्सा, चिड़चिड़ापन और एग्रेसिव व्यवहार को बढ़ावा देती हैं। बच्चा अपने आसपास होने वाली हर बात को ध्यान से देखता और सीखता है। माता-पिता किस तरह बोलते हैं, कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और तनाव में कैसा व्यवहार करते हैं—ये सब बच्चे के दिमाग में धीरे-धीरे पैटर्न की तरह सेट होने लगता है। ऐसे में छोटी-छोटी आदतें भी बच्चे की भावनात्मक स्थिति को अस्थिर कर सकती हैं।
सबसे पहली और आम गलती है बच्चे के सामने झगड़ा या तेज आवाज में बहस करना। माता-पिता जब अपने विवादों को बच्चे के सामने ही निपटाते हैं, तो बच्चा असुरक्षित महसूस करता है और उसके भीतर aggression पनपना शुरू हो जाता है। बच्चा यह मानने लगता है कि तेज आवाज और आक्रामक व्यवहार ही समस्याओं का हल है। इसी तरह लगातार डांटना, ताने देना या तुलना करना बच्चे को अंदर से तोड़ देता है। वह खुद को अयोग्य समझने लगता है और यह भावनात्मक दबाव कई बार गुस्से के रूप में बाहर आता है। नरमी से समझाना हमेशा ज्यादा असरदार होता है।
आज की भागदौड़ में एक और सामान्य समस्या है कि पैरेंट्स मोबाइल, टीवी या लैपटॉप में इतने व्यस्त रहते हैं कि बच्चा उपेक्षित महसूस करता है। उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए वह गुस्से या शरारत का सहारा लेने लगता है। बच्चे को समय देना और उसकी बात सुनना बेहद जरूरी है। इसके अलावा घर में अभद्र भाषा, कठोर टोन या गाली-गलौज का इस्तेमाल बच्चे पर सीधा असर डालता है। बच्चा वही भाषा और व्यवहार कॉपी करने लगता है जो वह अपने आसपास देखता है। इसलिए अपनी भाषा और टोन का ध्यान रखना पैरेंटिंग का अहम हिस्सा है।
हर बच्चे की भावनाएं महत्वपूर्ण होती हैं। लेकिन अक्सर माता-पिता “ड्रामा मत करो”, “इतना भी कुछ नहीं हुआ” जैसे शब्द कहकर बच्चों की फीलिंग्स को दरकिनार कर देते हैं। इससे बच्चा अपनी भावनाओं को दबाना सीख जाता है और जब वह उन्हें नियंत्रित नहीं कर पाता, तो एग्रेसिव आउटबर्स्ट होने लगते हैं। उसे यह समझना जरूरी है कि उसकी बात सुनी जा रही है, उसकी भावनाएं महत्व रखती हैं और उसका गुस्सा या उदासी भी वैध है।
कुल मिलाकर, यदि आपका बच्चा अधिक रिएक्टिव या एग्रेसिव दिख रहा है, तो सबसे पहले अपने व्यवहार पर नजर डालें। बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं। घर में शांत, सम्मानजनक और प्यार भरा माहौल उन्हें भावनात्मक रूप से संतुलित रखता है और उनकी ग्रोथ को सही दिशा देता है।