आईटी सेक्टर में छंटनी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। ताज़ा झटका आया है मल्टीनेशनल टेक कंपनी HP से, जिसने साफ संकेत दे दिए हैं कि 2028 तक कंपनी करीब 4,000 से 6,000 पदों को खत्म करने की तैयारी में है। यह कदम कंपनी के बड़े पुनर्गठन और लागत घटाने की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। एचपी ने जिस तरह वैश्विक बाजार में मंदी, पर्सनल कंप्यूटर की गिरती मांग और ऑटोमेशन बढ़ने को अपनी प्लानिंग का आधार बनाया है, उससे साफ है कि आने वाले समय में टेक इंडस्ट्री और भी बड़े उतार-चढ़ाव देख सकती है।
दरअसल कोविड के बाद के दौर में पीसी और लैपटॉप की मांग तेजी से गिर गई है। 2020-21 में जब वर्क-फ्रॉम-होम और ऑनलाइन एजुकेशन के कारण इस सेक्टर में बूम आया था, अब परिस्थितियां पूरी तरह उलट चुकी हैं। वैश्विक महंगाई, खर्च कम करने की प्रवृत्ति और कंपनियों के बजट कटौती ने एचपी को मजबूर किया है कि वह अपने ऑपरेशनल खर्चों को कम करने के लिए बड़े कदम उठाए। इसी क्रम में हजारों कर्मचारियों की नौकरी अगले कुछ वर्षों में खतरे में पड़ने वाली है।
सिर्फ एचपी ही नहीं, खबरें यह भी बताती हैं कि Apple भी अपने ऑपरेशंस में भारी बदलाव की तैयारी में है। टेक मार्केट में बदलाव, हार्डवेयर सेल्स की धीमी गति और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की आक्रामक एंट्री ने एपल को भी कई डिपार्टमेंट्स की री-स्ट्रक्चरिंग पर मजबूर कर दिया है। कंपनी अपने नॉन-कोर प्रोजेक्ट्स में कटौती कर रही है और कई पद ऐसे हैं जिन्हें खत्म करने की प्रक्रिया अगले महीनों में तेज हो सकती है। हालांकि, आधिकारिक घोषणा सीमित स्तर पर ही सामने आई है, लेकिन इंडस्ट्री सूत्र मानते हैं कि टेक सेक्टर में यह 2025-26 की सबसे बड़ी कटौती साबित हो सकती है।
टेक इंडस्ट्री जिस तेज़ी से बदल रही है, वहां कंपनियां अब कम कर्मचारियों में ज्यादा आउटपुट चाहती हैं। एआई और ऑटोमेशन के बढ़ते उपयोग ने लागत कम करने का रास्ता खोल दिया है, लेकिन इसका असर सीधे नौकरीपेशा लोगों पर पड़ रहा है। एचपी की यह घोषणा सिर्फ कंपनी-स्तर का फैसला नहीं, बल्कि यह संकेत है कि आने वाले समय में टेक सेक्टर में स्थिरता की उम्मीद फिलहाल कम ही है।
एपल की संभावित कटौती और एचपी की आधिकारिक पुष्टि ने आईटी इंडस्ट्री में चिंता बढ़ा दी है। ऐसे समय में कंपनियां निवेश कम कर रही हैं, प्रोजेक्ट साइज घटा रही हैं और भर्ती बिल्कुल धीमी पड़ चुकी है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि 2026 तक AI-driven economy में बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिलेंगे, जिसके कारण पारंपरिक आईटी नौकरियां और ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं। फिलहाल छंटनी की यह लहर टेक सेक्टर में काम करने वाले लाखों लोगों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है।