कान में दर्द, खुजली, बंद होने जैसा अहसास या फिर धीरे-धीरे सुनाई कम देना—ये ऐसी समस्याएं हैं जिनका सामना लगभग हर व्यक्ति कभी-न-कभी जरूर करता है। हमारी रोजमर्रा की छोटी-छोटी आदतें जैसे सुबह तेज आवाज में इयरफोन लगाना, नहाने के बाद कान ठीक से न सुखाना, गंदगी निकालने के लिए कॉटन बड का इस्तेमाल करना, या फिर लगातार शोरगुल में रहना… ये सभी धीरे-धीरे हमारी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचाती हैं। 2024 की लैंसेट कमीशन रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि अनट्रीटेड हियरिंग लॉस से डिमेंशिया का खतरा 90% तक बढ़ जाता है और दुनिया के लगभग 8% डिमेंशिया केस इसी वजह से होते हैं। यानी कान सिर्फ सुनने के लिए जरूरी नहीं हैं, यह दिमाग को स्वस्थ रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
नारायणा अस्पताल, गुरुग्राम के डायरेक्टर और सीनियर ईएनटी कंसल्टेंट डॉ. अमित शर्मा बताते हैं कि सुनने की समस्या का बढ़ना आज की लाइफस्टाइल से जुड़ा हुआ है। लगातार तेज आवाज में रहना, हेडफोन का अत्यधिक उपयोग, स्ट्रेस, प्रदूषण और खराब खान-पान सबसे बड़े कारण हैं। शहरों में रोजाना 80–90 डेसिबल तक का शोर हमारे कानों की अंदरूनी कोशिकाओं को धीरे-धीरे कमजोर कर देता है, और लोग महीनों तक कान की जांच नहीं करवाते, जिससे छोटी समस्या आगे चलकर बड़ी परेशानी बन जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार हमारी कुछ रोजमर्रा की आदतें सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। कई लोग कान में कॉटन बड, पिन, चाबी या किसी तेज चीज से सफाई करते हैं। इससे कान का वैक्स बाहर निकलने की जगह उल्टा भीतर धकेल दिया जाता है, कान की त्वचा या पर्दे पर चोट लग सकती है और इंफेक्शन तक हो सकता है। दूसरी ओर तेज आवाज में म्यूजिक सुनना—चाहे वह कॉन्सर्ट का DJ हो या फोन का लाउडस्पीकर—कान के हियरिंग सेल्स को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाता है। यदि कोई व्यक्ति 60% से ज्यादा वॉल्यूम पर रोजाना एक घंटे से अधिक हेडफोन इस्तेमाल करता है, तो धीरे-धीरे सुनने की कोशिकाएं मरने लगती हैं, जो कभी वापस नहीं बनतीं।
रातभर ईयरबड्स लगाकर सोना भी कानों को नुकसान पहुंचाता है। लगातार दबाव और आवाज के कारण कान के अंदर संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। नहाने या स्विमिंग के बाद कान को ठीक से न सुखाने पर पानी कान में फंस जाता है, जिससे फंगल और बैक्टीरियल इंफेक्शन तेजी से फैल सकता है। जिम में तेज गानों पर वर्कआउट करते समय भी लोग हेडफोन लगा लेते हैं, जबकि जिम पहले से ही शोरगुल से भरा होता है। उससे कान पर दोहरा दबाव पड़ता है और नुकसान कहीं जल्दी होता है।
शहरों के ट्रैफिक का लगातार शोर, लाउडस्पीकर के पास बैठना, शादी-ब्याह या रैली में 100-120 डेसिबल तक की आवाज सुनना भी कानों पर सीधा हमला करता है। शुरुआत में यह सामान्य लगता है, लेकिन लंबे समय तक ऐसे माहौल में रहने से सुनने की शक्ति धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसके अलावा बैठकर काम करने वाली सिडेंटरी लाइफ, स्ट्रेस, जंक फूड, शराब और वेपिंग जैसी आदतें भी कान तक रक्त प्रवाह को प्रभावित करती हैं और हियरिंग लॉस को बढ़ावा देती हैं।
इन सभी समस्याओं से बचने के लिए डॉ. शर्मा कुछ बेहद सरल, लेकिन असरदार नियम बताते हैं। कान को सिर्फ बाहर से गीले कपड़े से साफ करना चाहिए। कान के अंदर कभी कुछ नहीं डालना चाहिए क्योंकि कान अपनी सफाई खुद करता है। नहाने या स्विमिंग के बाद सिर झुकाकर पानी बाहर निकलने दें और तौलिए से हल्के से दबाकर सुखा लें। तेज आवाज वाली जगहों जैसे शादी, रैली या कॉन्सर्ट में आसानी से मिलने वाले फोम ईयरप्लग लगाना चाहिए, जो आवाज को 20–30 डेसिबल तक कम कर देते हैं। हेडफोन का इस्तेमाल 60% वॉल्यूम से कम रखें और 60 मिनट से अधिक लगातार न सुनें। इससे हियरिंग सेल्स को आराम मिलता है और स्थायी नुकसान रुकता है।
कान को स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए रोज थोड़ा शांत समय बिताना भी जरूरी है, ताकि कान खुद को रिकवर कर सके। हरी सब्जियां, फल, नट्स और पर्याप्त पानी लेने से कान तक खून और ऑक्सीजन आसानी से पहुंचती है। वॉक करना, योगा और हल्की एक्सरसाइज ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाती है और कान की कोशिकाओं को मजबूत बनाए रखती है। 10–15 मिनट की गहरी सांस या मेडिटेशन तनाव कम करने में मदद करता है, जिससे टिनिटस जैसे लक्षण नहीं बढ़ते। धूम्रपान और शराब से दूरी रखकर कान और उनकी नसों को स्वस्थ रखा जा सकता है। डायबिटीज और ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखना भी आवश्यक है क्योंकि ये दोनों बीमारियां कान की नसों को खराब कर सकती हैं।
सर्दियों में कान को मफलर या टोपी से ढकना आवश्यक है क्योंकि ठंडी हवा कान के भीतर की नाजुक परतों को नुकसान पहुंचा सकती है और संक्रमण के खतरे को बढ़ाती है। सर्दी-जुकाम होने पर तुरंत इलाज करवाना चाहिए, क्योंकि सर्दी अक्सर नाक और गले से कान तक फैल सकती है।
डॉक्टरों के अनुसार यदि कान में दर्द 24 घंटे से अधिक रहे, तेज बुखार आए, कान से खून या पीला पानी निकले, सुनाई अचानक कम हो जाए या कान में घंटी जैसी आवाज लगातार सुनाई दे तो तुरंत ENT डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कान का दर्द आमतौर पर सामान्य होता है, लेकिन इसे नजरअंदाज करने पर दुर्लभ मामलों में इंफेक्शन दिमाग की झिल्ली तक फैल सकता है, इसलिए सावधानी जरूरी है। वैक्स जमा होना कोई बीमारी नहीं है, लेकिन बहुत ज़्यादा हो जाए तो ENT डॉक्टर से साफ कराना बेहतर होता है।
घरेलू देखभाल में भी कई चीजें मददगार हैं। यदि सर्दी या गले की खराश के साथ कान में दर्द हो रहा है, तो पहले उसका इलाज करें, कान का दर्द अपने आप कम हो जाएगा। दर्द होने पर गर्म या ठंडी सेंक राहत देती है। हल्का पेनकिलर डॉक्टर की सलाह से लिया जा सकता है। जिस तरफ कान दर्द हो, उसकी उल्टी तरफ करवट लेकर सोने से कान में दबाव कम होता है और दर्द में राहत मिलती है। गर्दन को धीरे-धीरे घुमाने से भी तनाव कम होता है और दर्द में सुधार होता है। डॉक्टर की सलाह से दर्द निवारक ईयर ड्रॉप्स भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
कान की सेहत को सुरक्षित रखना मुश्किल नहीं है, बस अपनी रोजमर्रा की आदतों में थोड़ा-सा बदलाव और समय-समय पर जांच की जरूरत है। यदि कानों की सही देखभाल की जाए तो हमारी सुनने की शक्ति जीवनभर सुरक्षित रह सकती है।