रांची की शाम विराट कोहली के नाम रही। भारत के पूर्व कप्तान ने 135 रन की धमाकेदार पारी खेलकर न सिर्फ टीम को 17 रन की जीत दिलाई, बल्कि यह भी जता दिया कि उम्र, अनुभव और आलोचना—किसी भी चीज़ का उनकी क्लास के सामने कोई मुकाबला नहीं। ऐसा लगा जैसे पुराना, वही जुझारू, वही आक्रामक और वही अडिग विराट मैदान पर लौट आया हो, जो गेंदबाज़ों को शुरुआत से ही दबाव में डाल देता था। पहली ही गेंद से उनके शरीर की भाषा बता रही थी कि आज कहानी कुछ अलग लिखी जाएगी।
इस शतक की खास बात सिर्फ रन नहीं थे, बल्कि उनका अंदाज़ था। 11 चौके, 7 गगनचुंबी छक्के—वनडे करियर में ऐसे मुकाबले बहुत कम हैं जहां उन्होंने एक साथ इतने बड़े शॉट लगाए हों। फिटनेस का स्तर ऐसा कि 135 में से 49 रन दौड़कर आए। मैदान पर उनकी गति देखते ही लगता था मानो समय पीछे चला गया हो और 2016-17 वाला विराट फिर से हमारे सामने खड़ा हो गया हो। यह पारी सिर्फ एक इनिंग नहीं, बल्कि उस विराट की वापसी थी जो बड़े मौकों के लिए ही बना है।
मैच के बाद विराट ने हर्षा भोगले से बात करते हुए जो कहा, उसने सभी को चौंका दिया। उन्होंने साफ बताया कि अब उनकी तैयारी तकनीकी कम और मानसिक ज्यादा होती है। उनके शब्द थे—“मैं तैयारी में ज्यादा भरोसा नहीं करता। मेरी क्रिकेट हमेशा मानसिक रही है। जब तक दिमाग फिट है और शरीर एक्टिव है, खेल चलता रहेगा।” यह बयान सुनकर साफ समझ आता है कि कोहली का खेल अब सिर्फ क्रिकेट नहीं, बल्कि एक मानसिक अनुशासन है जो उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग बनाता है।
इसके बाद जब उन्होंने फिटनेस पर बात की तो बात और भी दिलचस्प हो गई—“फिटनेस अब क्रिकेट का हिस्सा नहीं, मेरी जिंदगी का हिस्सा है।” 300 से ज्यादा वनडे खेलने वाले खिलाड़ी के लिए यह आत्मविश्वास आसान नहीं। वे बताते हैं कि अगर नेट्स में डेढ़-दो घंटे लगातार बल्लेबाजी कर लो तो समझ लो कि शरीर और दिमाग दोनों सही दिशा में हैं। यही वह समर्पण है जो उन्हें 37 की उम्र में भी बाकी खिलाड़ियों से तेज और चुस्त रखता है।
बीच में चर्चा यह भी थी कि उन्हें और रोहित को घरेलू वनडे खेलने के निर्देश दिए जा सकते हैं, ताकि वे 50 ओवर की लय से जुड़े रहें। लेकिन कोहली ने शांत भाव से बताया कि वे लगातार इंग्लैंड में नेट्स पर मेहनत कर रहे हैं और अपनी फॉर्म व टाइमिंग को बनाए रखे हुए हैं। यह आत्मविश्वास फिर रांची में भी साफ दिख गया—शुरुआत में गति, बीच में नियंत्रण और अंत में वही पुराना आक्रमण जिसने खेल का रुख बदल दिया।
शतक पूरा करते ही उनका हवा में उछलना, मुट्ठी तानना और वह पुरानी ऊर्जा साफ बता रही थी कि इस पारी का मतलब उनसे ज्यादा किसी और के लिए नहीं था। इस शतक के साथ उन्होंने सचिन तेंदुलकर का वह प्रमुख रिकॉर्ड भी पीछे छोड़ दिया—एक ही फॉर्मेट में सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय शतक।
साउथ अफ्रीका की ओर से मार्को यानसेन और कॉर्बिन बॉश ने भरपूर कोशिश की, लेकिन भारत का 349 का विशाल स्कोर उनके लिए भारी साबित हुआ। यह मैच सिर्फ भारत की जीत नहीं, बल्कि विराट की उस घोषणा जैसा था जिसमें उन्होंने बिना कहे बता दिया कि अनुभव, अनुशासन और जुनून जब साथ जुड़ते हैं, तो उम्र सिर्फ एक संख्या बनकर रह जाती है।
रांची का यह शतक याद दिलाता है कि विराट कोहली अब भी वहीं खड़े हैं जहां दुनिया का सबसे फिट, सबसे जुनूनी और सबसे बड़ा बल्लेबाज खड़ा होता है।