2003 की लिस्ट में नाम न होने पर भी वोटिंग राइट्स सुरक्षित—SIR की डेडलाइन 11 दिसंबर तक बढ़ी, फॉर्म वितरण में छत्तीसगढ़ आगे लेकिन डिजिटाइजेशन में पीछे

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भारत निर्वाचन आयोग ने 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जारी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के कार्यक्रम में संशोधन करते हुए सभी तिथियों को एक सप्ताह बढ़ा दिया है। नए शेड्यूल के मुताबिक अब 1 जनवरी 2026 को ‘योग्य तिथि’ माना जाएगा, यानी इस तिथि तक 18 वर्ष पूरा करने वाला हर नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल होने का हकदार होगा। वहीं घर-घर जाकर गणना फॉर्म वितरित और संग्रह करने की अंतिम तिथि अब 11 दिसंबर 2025 तय कर दी गई है। इसी अवधि तक उन क्षेत्रों में मतदान केंद्रों का पुनर्विन्यास भी पूरा कर लिया जाएगा, जहां इसकी आवश्यकता होगी।

छत्तीसगढ़ में जारी SIR को लेकर सबसे बड़ी भ्रांति यह फैल गई थी कि नागरिकों का नाम तभी वैध माना जाएगा जब वह 2003 की मतदाता सूची में मौजूद हो। कलेक्टर गौरव सिंह ने यह भ्रम पूरी तरह दूर करते हुए स्पष्ट किया है कि 2003 की सूची में नाम का होना अनिवार्य नहीं है। यदि किसी के पास वर्तमान वोटर आईडी है तो वह पूरी तरह वैध मतदाता है और SIR फॉर्म भर सकता है। लंबे समय से नागरिक गणना फॉर्म की तिथि बढ़ाने की मांग कर रहे थे, जिसे अब आयोग ने पूरा कर दिया है।

मतदाता सूची में नाम जोड़ने की प्रक्रिया को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी उन लोगों की है जिनका नाम 2003 की सूची में पहले से मौजूद है। दूसरी श्रेणी उन नागरिकों की है जिनके माता-पिता का नाम सूची में नहीं मिलता, लेकिन दादा-दादी या नाना-नानी का नाम मिल जाता है। ऐसे मामलों में परिवार का कोई एक पुराना रिकॉर्ड पर्याप्त है। तीसरी श्रेणी उन नागरिकों की है, जिनका परिवार का कोई भी सदस्य 2003 की सूची में नहीं पाया जाता। ऐसे लोग भी बस अपना वर्तमान वोटर आईडी आधार बनाकर फॉर्म भर सकते हैं। फॉर्म जमा होने के बाद अंतिम सूची प्रकाशित होते समय उनका नाम शामिल रहेगा।

हालांकि इस प्रक्रिया में जिला चुनाव कार्यालय एक और स्तर पर सत्यापन करेगा। फॉर्म जमा होने पर उम्मीदवार को नोटिस भेजा जाएगा, सुनवाई के लिए बुलाया जाएगा और आधार कार्ड सहित 12 मान्य दस्तावेज़ों में से कोई एक प्रस्तुत करने के बाद व्यक्ति का नाम सुरक्षित रूप से मतदाता सूची में दर्ज कर दिया जाएगा।

छत्तीसगढ़ में फॉर्म वितरण को लेकर स्थिति बेहद संतोषजनक है। राज्य में EF फॉर्म का लगभग 100 प्रतिशत वितरण हो चुका है, जो दर्शाता है कि BLO की टीमें पूरे राज्य में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। लेकिन डिजिटलीकरण के मामले में तस्वीर उतनी सकारात्मक नहीं है। 29 नवंबर तक मिले डेटा के आधार पर छत्तीसगढ़ EF के डिजिटल एंट्री में 83.55% पर है, जो इसे 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में आठवें नंबर पर पहुंचाता है। लक्षद्वीप जहाँ 100 प्रतिशत डिजिटाइजेशन हासिल कर चुका है, वहीं छत्तीसगढ़ को डिजिटल एंट्री की गति बढ़ाने की जरूरत है, ताकि तय समयसीमा के भीतर SIR की प्रक्रिया पूरी हो सके।

12 से 15 दिसंबर तक डेटा अपडेट कर मसौदा सूची तैयार की जाएगी, जिसे 16 दिसंबर तक सार्वजनिक किया जाएगा। इसके बाद नागरिक 15 जनवरी 2026 तक सुधार के लिए आवेदन कर सकेंगे। 16 दिसंबर से 7 फरवरी तक दावे और आपत्तियों का निपटारा किया जाएगा। आयोग 10 फरवरी तक डेटा की गुणवत्ता की जांच पूरी करेगा और आखिरकार 14 फरवरी 2026 को अंतिम मतदाता सूची जारी की जाएगी। यानी निर्वाचन आयोग ने संपूर्ण कार्यक्रम में एक सप्ताह की अतिरिक्त समय सीमा जोड़कर प्रक्रिया को अधिक सुचारू बनाया है।

विवाहित महिलाओं के लिए भी आयोग ने स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यदि महिला का नाम 2003 की सूची में मौजूद है तो वह अपने वर्तमान विवरण दाईं ओर दर्ज करेगी। यदि नाम मौजूद नहीं है, तो वह अपने माता-पिता या दादा-दादी-नाना-नानी के नाम के आधार पर स्वयं को लिंक कर सकती है। दस्तावेजों के सत्यापन के बाद उनका नाम भी सुरक्षित रूप से जुड़ जाएगा।

अगर किसी व्यक्ति का नाम 2003 की सूची में नहीं मिलता, और परिवार का भी नहीं, तब भी फॉर्म भरना अनिवार्य है। सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसका नाम वोटर लिस्ट में वैध रूप से मौजूद रहेगा। छत्तीसगढ़ में कुल मतदाताओं की संख्या 2.12 करोड़ से अधिक है, जो कई बड़े राज्यों से कम है, लेकिन BLO और BLA का अनुपात भी इसी अनुसार छोटा है। राज्य में औसतन एक BLO पर 871 मतदाता और एक BLA पर लगभग 546 मतदाता हैं।

हालांकि EF वितरण में छत्तीसगढ़ शीर्ष श्रेणी में आता है, लेकिन डिजिटलीकरण की रफ्तार अभी अन्य राज्यों से पीछे है। यही वजह है कि फॉर्म तो बांटे जा चुके हैं, लेकिन उनके डिजिटल रिकॉर्ड की एंट्री अपेक्षित गति से नहीं हो रही।

स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन वास्तव में निर्वाचन आयोग का सबसे विस्तृत और सटीक मतदाता सत्यापन अभियान है, जो तब चलाया जाता है जब वार्षिक समरी रिवीजन पर्याप्त नहीं होता। इसमें घर-घर जाकर रिकॉर्ड मिलान, ऑनलाइन-अॉफलाइन सबमिशन की जाँच और डुपलीकेट एंट्री हटाने जैसे कार्य शामिल होते हैं।

किसी भी प्रकार की सहायता के लिए नागरिक 1950 हेल्पलाइन पर कॉल कर सकते हैं या अपने BLO और जिला चुनाव कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

एक महत्वपूर्ण निर्देश बिहार को लेकर भी जारी किया गया है। यदि कोई व्यक्ति 12 राज्यों में से किसी एक में अपना नाम जुड़वाना चाहता है और वह बिहार की SIR के बाद की मतदाता सूची में माता-पिता का नाम प्रस्तुत करता है, तो उसे नागरिकता के अन्य प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं होगी—केवल जन्मतिथि का प्रमाण पर्याप्त होगा।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद आयोग ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के रूप में तो स्वीकार किया जाएगा, लेकिन नागरिकता सिद्ध करने के लिए नहीं।

इस पूरे अभियान का उद्देश्य सिर्फ एक है—मतदाता सूची को सर्वाधिक सटीक, अपडेटेड और त्रुटिरहित बनाना, ताकि प्रत्येक पात्र नागरिक का वोट सुरक्षित रहे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और मजबूत बने।

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