छत्तीसगढ़ कांग्रेस की नई जिलाध्यक्ष सूची ने पार्टी के भीतर मौजूद गुटीय ताकत और नेतृत्व के प्रभाव का पूरा राजनीतिक नक्शा सामने रख दिया है। 41 जिलों में हुए बदलावों और नियुक्तियों के जरिए यह साफ दिखा कि संगठन किस दिशा में बढ़ रहा है और किन चेहरों पर पार्टी का भरोसा लगातार कायम है। कई जिलों में नए चेहरे सामने आए, कुछ जगह पुराने नेताओं पर विश्वास दोहराया गया, जबकि बड़े नेताओं के प्रभाव वाले क्षेत्रों में उनकी पकड़ पहले की तरह मजबूत दिखाई दी।
पूरी सूची में सबसे प्रमुख बात यह रही कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कैंप की पकड़ अब भी बेहद मजबूत है। कुल नियुक्तियों में से 14 जिलाध्यक्ष ऐसे हैं जो सीधे-सीधे बघेल खेमे से जुड़े दिखाई देते हैं। बालोद, बलौदाबाजार, महासमुंद, दुर्ग ग्रामीण, भिलाई और कोंडागांव जैसे जिलों में बघेल समर्थकों को दोबारा मौका मिलना इस बात का संकेत है कि फील्ड नेटवर्क पर उनकी पकड़ अभी भी गहरी है। जशपुर के यूडी मिंज और महासमुंद के द्वारकाधीश यादव जैसे नाम लंबे समय से बघेल के करीबी माने जाते रहे हैं और इस सूची में उनका स्थान वही निरंतरता दिखाता है।
पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज का प्रभाव भी नए जिलाध्यक्षों की घोषणा में बेहद स्पष्ट दिखाई देता है। बस्तर और बिलासपुर संभाग में उनका समीकरण सबसे मजबूत उभरकर सामने आया है। चार जिलाध्यक्ष सीधे बैज की पसंद माने जा रहे हैं, जबकि बिलासपुर सिटी के सिद्धांशु मिश्रा जैसे चेहरे बैज और देवेन्द्र यादव—दोनों कैंपों के सेतु बनकर उभरे हैं। इससे यह समझ आता है कि बैज ने बस्तर में अपना नेटवर्क मजबूत करते हुए बिलासपुर में संतुलन की राजनीति को तवज्जो दी है।
नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत का प्रभाव भी बिलासपुर संभाग में कायम है। पांच जिलों—कोरिया, सक्ती, जीपीएम, जांजगीर और मनेंद्रगढ़—में महंत समर्थकों की नियुक्ति इस बात की पुष्टि करती है कि संगठनात्मक फैसलों में उनकी भूमिका अब भी महत्वपूर्ण है। महंत हमेशा से नेगोशिएशन और संगठनात्मक तालमेल में माहिर माने जाते हैं और यह सूची उस छवि को और मजबूत करती है।
पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव जहां केवल दो जिलों—सरगुजा और मुंगेली—तक सीमित दिखाई देते हैं, वहीं यह भी उल्लेखनीय है कि सरगुजा में उनकी पकड़ सबसे गहरी मानी जाती है। बालकृष्ण पाठक जैसे वफादार चेहरे का चयन सिंहदेव की स्थानीय ताकत की पुष्टि करता है।
उमेश पटेल और जयसिंह अग्रवाल अपने-अपने क्षेत्रों में पहले से ही मजबूत माने जाते रहे हैं। रायगढ़ में पटेल की पकड़ दो जिलाध्यक्षों के माध्यम से झलकती है, जबकि कोरबा में अग्रवाल का प्रभाव बेहद स्पष्ट है, जहां दोनों जिलाध्यक्ष उनके करीबी माने जाते हैं।
मो. अकबर, कर्मा परिवार और ताम्रध्वज साहू का प्रभाव भी सूची में नजर आया। कवर्धा, दंतेवाड़ा और बेमेतरा जैसे क्षेत्रों में इनके करीबी जिलाध्यक्ष बनाए गए। वहीं सात ऐसे नाम भी उभरे जो किसी बड़े नेता के कैंप से सीधे नहीं बल्कि संगठन की अपनी पसंद के तहत चुने गए हैं—रायपुर, राजनांदगांव, सुकमा और जीपीएम उनमें शामिल हैं।
41 में से 16 जिलाध्यक्षों को दोबारा मौका दिए जाने से यह भी स्पष्ट होता है कि जहां संगठन पहले से मजबूत था या स्थानीय समीकरण स्थिर थे, वहां पुराने नेतृत्व को बरकरार रखकर निरंतरता को प्राथमिकता दी गई है। जातीय समीकरण में OBC वर्ग के 13 जिलाध्यक्षों के चयन से पार्टी का यह संदेश साफ है कि OBC-सामान्य वर्ग के संतुलन को साधने की कोशिश प्रमुख रही है।
संगठन अब नए प्रयोगों की ओर भी बढ़ रहा है। नई नियुक्तियों के तुरंत बाद दिल्ली में होने वाली विशेष ट्रेनिंग, जिलाध्यक्षों की राहुल गांधी से मुलाकात, और छह महीने में एक बार की जाने वाली परफ़ॉर्मेंस समीक्षा यह बताती है कि कांग्रेस इस बार ज़िले स्तर पर भी काम को परिणामों से जोड़ने की नीति अपना रही है। कौन जिला कितनी सक्रियता दिखा रहा है, बूथ स्तर तक पहुंच बना पाया या नहीं, जनसंपर्क और आंदोलनात्मक गतिविधियों में कितनी भागीदारी दी—इन सबका रिपोर्ट कार्ड हर छह महीने में तैयार होगा।
यही पूरा गणित दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नए जिलाध्यक्ष केवल राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हैं, बल्कि यह संगठन के भीतर चल रहे शक्ति-संतुलन, समीकरणों और भविष्य की रणनीति की एक विस्तृत तस्वीर भी पेश करते हैं।