भारत के लिए उर्वरकों का सबसे बड़ा स्रोत बना रूस, 26% हिस्सेदारी के साथ बढ़ाया आर्थिक दबदबा; आयात शुल्क घटाने की मांग तेज़

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भारत और रूस के आर्थिक संबंध बीते कुछ वर्षों में जिस गति से बदले हैं, उसका सबसे बड़ा प्रतिबिंब अब उर्वरक व्यापार में दिखाई दे रहा है। रूस ने अपने पारंपरिक बाज़ारों का रुख बदलते हुए खाद आपूर्ति का केंद्र धीरे-धीरे भारत की ओर मोड़ दिया है। 2021 की तुलना में रूस का भारत को उर्वरक निर्यात अब 4.3 गुना तक बढ़ चुका है। रूस के उर्वरक उत्पादक संघ के अध्यक्ष आंद्रे गुरयेव का कहना है कि भारत इस समय रूस की आर्थिक वृद्धि का प्रमुख इंजन बन गया है—एक ऐसी ताकत, जो ब्रिक्स देशों के भीतर रणनीतिक सहयोग को भी नई दिशा दे रही है।

भारत की मांग बीते दो वर्षों में लगातार बढ़ी है। वर्ष 2024 में भारत द्वारा रूस से खरीदे गए कुल 4.7 मिलियन टन उर्वरक इस बढ़ती निर्भरता की पुष्टि करते हैं। 2024 के पहले नौ महीनों में ही रूस ने 4.2 मिलियन टन खाद भारतीय बाज़ार में भेज दिया—यह पिछले साल की तुलना में 40% की छलांग है। खास बात यह है कि इस उछाल में सबसे बड़ी भूमिका फॉस्फोरस-आधारित उर्वरकों ने निभाई है, जो भारतीय कृषि उत्पादन की नींव माने जाते हैं। यही वजह है कि आज भारत के कुल उर्वरक आयात में रूस की हिस्सेदारी 26% तक पहुंच गई है और वह भारत का सबसे बड़ा उर्वरक आपूर्तिकर्ता बन चुका है।

यह बदलाव भारतीय किसानों के लिए भी राहत लेकर आया है। लंबे समय से किसानों को अनियमित सप्लाई और अचानक पैदा होने वाली उर्वरक कमी से जूझना पड़ा है। रूस के लगातार बढ़ते निर्यात ने इस अनिश्चितता को काफी हद तक कम कर दिया है। नियमित उपलब्धता के साथ कीमतें भी स्थिर रहने की उम्मीद है, जिससे कृषि लागत नियंत्रित रहेगी। रूस पर्यावरण-अनुकूल उर्वरकों की आपूर्ति बढ़ाने पर भी जोर दे रहा है, जो आधुनिक खेती की जरूरतों से मेल खाता है।

हालांकि साझेदारी जितनी मजबूत लग रही है, उतनी ही स्पष्ट रूस की एक प्रमुख शिकायत भी है—भारत द्वारा 5.5% आयात शुल्क लगाना। गुरयेव का कहना है कि यह शुल्क रूसी खादों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बाधित कर रहा है। रूस का दावा है कि यदि भारत इस शुल्क को कम करता है, तो वह और बड़ी मात्रा में उर्वरक भारत भेजने को तैयार है, जिससे दोनों देशों के लिए स्थिर और दीर्घकालिक व्यापारिक फायदा सुनिश्चित होगा।

कुल मिलाकर, रूस और भारत के बीच उर्वरक व्यापार का यह बढ़ता वॉल्यूम केवल आर्थिक लेन-देन नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति और ब्रिक्स ढांचे के भीतर शक्ति-संतुलन को भी प्रभावित करने वाला कारक बन गया है। भारत के कृषि परिदृश्य में स्थिरता और सप्लाई सुरक्षा को देखते हुए यह साझेदारी आने वाले वर्षों में और गहरी होने की संभावना है।

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