कांग्रेस नेता की जेल में मौत से बस्तर में उबाल, जगदलपुर में दिखा बंद का असर, आदिवासी समाज ने प्रशासन को दिया 11 दिन का अल्टीमेटम

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छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले से जुड़े कांग्रेस नेता की रायपुर सेंट्रल जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के बाद पूरे बस्तर संभाग में आक्रोश का माहौल बन गया है। इस घटना के विरोध में सर्व आदिवासी समाज द्वारा बस्तर बंद का आह्वान किया गया, जिसका असर जगदलपुर में भी स्पष्ट रूप से देखने को मिला। सुबह से ही आदिवासी समाज के युवा सड़क पर उतरे और बाइक रैलियों के माध्यम से शहर के प्रमुख बाजार क्षेत्रों का भ्रमण करते हुए लोगों से स्वेच्छा से दुकानें बंद करने की अपील करते रहे।

चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने पहले ही बंद को समर्थन देने का फैसला किया था और सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक बाजार बंद रखने की घोषणा की गई थी। इसका असर यह रहा कि शहर की अधिकांश दुकानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और संस्थानों पर ताले लटके नजर आए। हालांकि बंद के दौरान आवश्यक सेवाओं को इससे अलग रखा गया, जिससे आम जनता को किसी तरह की बुनियादी परेशानी न हो।

शहर में मेडिकल दुकानें, अस्पताल, पेयजल आपूर्ति, बिजली सेवा, स्कूल, महाविद्यालय, यात्री परिवहन और पेट्रोल पंप सामान्य रूप से संचालित होते रहे। संजय बाजार सब्जी मंडी, गोल बाजार सब्जी बाजार और कुछ चाय-ठेले खुले दिखे, जबकि बाकी बाजार क्षेत्र पूरी तरह शांत और सुनसान नजर आया। बंद को पूरी तरह शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए शहर के हर चौक-चौराहे पर पुलिस बल की तैनाती की गई थी, जिसमें महिला और पुरुष दोनों जवान मुस्तैद रहे।

आदिवासी नेता जीवन ठाकुर की कथित जेल में हत्या के विरोध में समाज के लोग सड़कों पर उतरे और बाइक रैली के जरिए नारेबाजी करते हुए अपना विरोध दर्ज कराया। पुलिस प्रशासन ने जिले समेत आसपास के सभी इलाकों में अलर्ट जारी कर दिया था, ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटा जा सके। पूरे दिन शहर में बंद शांतिपूर्ण बना रहा और किसी प्रकार की बड़ी अप्रिय घटना नहीं हुई।

सर्व आदिवासी समाज और आंदोलन से जुड़े नेताओं ने इस पूरे मामले की निष्पक्ष और तेज जांच की मांग रखी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रशासन को 11 दिन का समय दिया जा रहा है, जिसके भीतर मामले की पूरी सच्चाई सामने लाई जाए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। चेतावनी भी दी गई है कि अगर तय समय सीमा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो आंदोलन को और उग्र रूप दिया जाएगा।

कांग्रेस नेता की मौत से शुरू हुई यह घटना अब पूरे बस्तर में एकजुट विरोध का प्रतीक बनती जा रही है। आदिवासी समाज के आक्रोश और प्रशासन को दिए गए अल्टीमेटम से साफ है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा और भी बड़ा रूप ले सकता है।

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