7 घंटे से कम नींद लेना पड़ सकता है भारी, सेहत पर दिखने लगते हैं ये गंभीर असर

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आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में नींद सबसे ज्यादा नज़रअंदाज़ की जाने वाली ज़रूरत बन चुकी है। देर रात तक मोबाइल चलाना, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर लगातार कंटेंट देखना और काम का बढ़ता दबाव लोगों की नींद को लगातार कम कर रहा है। जबकि हकीकत यह है कि शरीर और दिमाग दोनों के ठीक से काम करने के लिए रोज़ाना पूरी और गहरी नींद बेहद ज़रूरी होती है। अगर यह आदत बन जाए कि रोज़ सात घंटे से कम सोया जाए, तो इसका असर धीरे-धीरे शरीर और मानसिक स्वास्थ्य पर साफ दिखने लगता है।

शुरुआत में एक-दो दिन कम सो लेने से कोई बड़ा फर्क महसूस नहीं होता, लेकिन जब यह सिलसिला लंबे समय तक चलता है, तो समस्याएं उभरने लगती हैं। रिसर्च बताती है कि लगातार नींद की कमी शरीर की प्राकृतिक रिकवरी प्रक्रिया को बाधित कर देती है। नींद के दौरान ही शरीर खुद को रिपेयर करता है और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। जब नींद पूरी नहीं होती, तो बीमारियों से लड़ने की ताकत कमजोर पड़ने लगती है, जिससे सर्दी-जुकाम, वायरल और इंफेक्शन जल्दी पकड़ में आने लगते हैं।

कम नींद का सीधा असर वजन पर भी पड़ता है। नींद की कमी से भूख को नियंत्रित करने वाले हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं, जिससे बार-बार भूख लगती है और जंक फूड या मीठी चीज़ों की क्रेविंग बढ़ जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि वजन तेजी से बढ़ने लगता है और मोटापे का खतरा बढ़ जाता है। यह समस्या खासतौर पर उन लोगों में ज्यादा देखी जाती है जिनकी दिनचर्या पहले से ही अनियमित होती है।

दिल की सेहत के लिए भी नींद बेहद अहम है। लगातार कम सोने से ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है और दिल पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। लंबे समय तक ऐसा रहने पर हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है, खासकर उन लोगों में जो पहले से तनाव या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे हों।

नींद की कमी दिमाग पर भी गहरा असर डालती है। सात घंटे से कम सोने पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, चीजें भूलना और काम में गलतियां बढ़ने लगती हैं। धीरे-धीरे याददाश्त कमजोर होने लगती है और मानसिक थकान बनी रहती है। लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहे तो एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी मेंटल हेल्थ समस्याओं का खतरा भी बढ़ सकता है।

इसके अलावा कम नींद शरीर की इंसुलिन सेंसिटिविटी को भी प्रभावित करती है। इससे ब्लड शुगर लेवल असंतुलित हो सकता है और टाइप-2 डायबिटीज का जोखिम बढ़ जाता है। यह खतरा उन लोगों में ज्यादा होता है जिनकी लाइफस्टाइल अनहेल्दी है और जो शारीरिक गतिविधि कम करते हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति के लिए रोज़ाना सात से आठ घंटे की नींद आदर्श मानी जाती है। सोने का एक तय समय रखना, सोने से पहले स्क्रीन से दूरी बनाना और शांत माहौल तैयार करना अच्छी नींद के लिए बेहद फायदेमंद हो सकता है।

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी तरह की स्वास्थ्य संबंधी सलाह अपनाने से पहले डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें।

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