20 साल बाद ठाकरे बंधुओं की सियासी एकजुटता: BMC चुनाव साथ लड़ेंगी उद्धव–राज की पार्टियां, मराठी अस्मिता के नाम पर गठबंधन

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मुंबई की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ आया है। करीब दो दशकों की दूरी के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने एक मंच पर आकर बृहन्मुंबई नगर निगम चुनाव साथ लड़ने का ऐलान कर दिया है। इस फैसले के साथ शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बीच 20 साल बाद चुनावी गठबंधन हुआ है। दोनों नेताओं ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनकी सोच एक है और अगर वे बंटे तो बिखर जाएंगे। महाराष्ट्र और मराठी अस्मिता के लिए एकजुट रहना वक्त की जरूरत है।

गठबंधन के ऐलान से पहले दोनों नेता शिवाजी पार्क स्थित बालासाहेब ठाकरे के स्मारक पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि दी। इसके बाद मंच से दिया गया संदेश साफ था—मराठी वोटों का बंटवारा अब नहीं होगा। महाराष्ट्र में बृहन्मुंबई नगर निगम समेत 29 नगर निगमों में 15 जनवरी को मतदान होगा और 16 जनवरी को नतीजे आएंगे। ऐसे में यह गठबंधन सीधे तौर पर मुंबई की सत्ता की लड़ाई को और दिलचस्प बना देता है।

दोनों नेताओं के भाषणों में मराठी पहचान केंद्र में रही। राज ठाकरे ने साफ कहा कि मुंबई का मेयर मराठी होगा और उनके दलों से ही होगा। उन्होंने यह भी दोहराया कि आपसी मतभेदों से बड़ा महाराष्ट्र है और आगे अन्य नगर निगमों को लेकर भी साझा घोषणाएं होंगी। वहीं उद्धव ठाकरे ने मराठी समाज से भावुक अपील करते हुए कहा कि अगर वे अब भी बंटे रहे तो सब कुछ खत्म हो सकता है। उन्होंने पिछली विधानसभा चुनावों में फैलाई गई कथित विभाजनकारी राजनीति का जिक्र करते हुए मराठी लोगों से एकजुट रहने का आह्वान किया।

इस एकजुटता के सियासी मायने दूरगामी हैं। लंबे समय से शिवसेना (उद्धव गुट) और मनसे के अलग-अलग चुनाव लड़ने से मराठी वोट बंटता रहा है। अब दोनों के साथ आने से यह वोट एकजुट हो सकता है, जिसका सीधा असर भाजपा और कांग्रेस–एनसीपी गठबंधनों पर पड़ना तय माना जा रहा है। मुंबई के मराठी बहुल इलाकों में यह समीकरण खास तौर पर चुनौतीपूर्ण बन सकता है। इसके साथ ही एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट पर भी दबाव बढ़ेगा, जो खुद को ‘असली शिवसेना’ बताता रहा है। ठाकरे भाइयों की एकजुटता से उस दावे पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

BMC चुनाव इसलिए भी साख का सवाल हैं क्योंकि यह देश की सबसे अमीर नगर निगम है। करीब 74 हजार करोड़ रुपये के बजट वाली इस सिविक बॉडी पर 1997 से 2017 तक अविभाजित शिवसेना का दबदबा रहा था। तब भाजपा उसकी सहयोगी थी। आज यही नगर निगम भाजपा, उद्धव ठाकरे की शिवसेना, शिंदे गुट, कांग्रेस और शरद पवार–अजीत पवार खेमे के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है। मुंबई नगर निगम का बजट कई राज्यों से भी बड़ा होने के कारण यहां नियंत्रण पाना राजनीतिक रूप से बेहद अहम माना जाता है।

इस गठबंधन की पृष्ठभूमि भी उतनी ही दिलचस्प है। 2005 में उद्धव ठाकरे को उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के बाद राज ठाकरे ने शिवसेना से इस्तीफा दे दिया था और 2006 में मनसे का गठन किया। इसके बाद दोनों रास्ते अलग हो गए। हालांकि 5 जुलाई 2025 को हिंदी भाषा विवाद के बीच ‘मराठी एकता’ के नाम पर दोनों नेता वर्ली डोम की रैली में साथ नजर आए थे, जिसे इस राजनीतिक मेल की पहली झलक माना गया। अब BMC चुनाव के लिए औपचारिक गठबंधन के साथ यह दूरी पूरी तरह खत्म होती दिख रही है।

कुल मिलाकर, 20 साल बाद ठाकरे बंधुओं का साथ आना सिर्फ एक चुनावी समझौता नहीं, बल्कि मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति में संतुलन बदलने वाला कदम माना जा रहा है। आने वाले नगर निगम चुनाव यह तय करेंगे कि यह एकजुटता मराठी राजनीति को नई ताकत देती है या फिर विरोधियों के लिए नई रणनीतियों का रास्ता खोलती है।

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