Insurance Policy Buying: इंश्योरेंस मिस-सेलिंग से कैसे बचें, पैसा देने से पहले ये सवाल खुद से ज़रूर करें

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इंश्योरेंस की दुनिया में सबसे बड़ा खतरा अक्सर गलत प्रोडक्ट नहीं, बल्कि गलत तरीके से बेचा गया प्रोडक्ट होता है। सामने बैठा व्यक्ति आत्मविश्वास से बात करता है, भरोसा दिलाता है और आपको यह महसूस करा देता है कि अगर अभी फैसला नहीं लिया तो आप किसी बड़े मौके से चूक जाएंगे। यहीं से मिस-सेलिंग की शुरुआत होती है। प्रोडक्ट पूरी तरह वैध और रेगुलेटेड हो सकता है, लेकिन वह आपकी ज़रूरत के लिए सही है या नहीं, यह बात जानबूझकर धुंधली रखी जाती है। इससे बचने का सबसे आसान तरीका है—जल्दबाज़ी से बाहर निकलना और पैसे देने से पहले सोचने का वक्त लेना।

अगर कोई इंश्योरेंस पॉलिसी “आज ही लेना ज़रूरी है”, “ऑफर खत्म होने वाला है” या “कल से नियम बदल जाएंगे” जैसी लाइनें बोलकर दबाव बना रहा है, तो सतर्क हो जाना चाहिए। सच यह है कि अच्छा प्रोडक्ट दो दिन बाद भी अच्छा ही रहेगा। अगर वाकई किसी डेडलाइन का हवाला दिया जा रहा है, तो उसका लिखित प्रमाण या सर्कुलर मांगना बिल्कुल जायज़ है। जल्दबाज़ी अक्सर ग्राहक के नहीं, बेचने वाले के हित में होती है।

इंश्योरेंस हमेशा अपनी ज़रूरत को केंद्र में रखकर लेना चाहिए। अगर आपको परिवार की सुरक्षा चाहिए, तो टर्म जैसे सुरक्षा-केंद्रित प्रोडक्ट देखें। अगर लक्ष्य निवेश या ग्रोथ है, तो निवेश के विकल्पों पर ध्यान दें। जब एक ही पॉलिसी को सुरक्षा, निवेश, टैक्स बचत, रिटायरमेंट और बच्चों की पढ़ाई—सबका समाधान बताकर पेश किया जाए, तो समझ लेना चाहिए कि कहानी ज़्यादा जटिल बनाई जा रही है। कई बार ऐसे बंडल प्रोडक्ट्स में फायदा कम और समझौते ज़्यादा छुपे होते हैं। अगर बेचने वाला साफ नहीं बता पा रहा कि आपको किस सुविधा के बदले क्या छोड़ना पड़ रहा है, तो साइन करना समझदारी नहीं है।

ज्यादातर पछतावा छिपे हुए खर्चों की वजह से होता है। निवेश से जुड़े इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स में मौखिक रिटर्न के दावों पर भरोसा करना जोखिम भरा हो सकता है। हमेशा ऑफिशियल बेनिफिट इलस्ट्रेशन मांगें और ध्यान से देखें कि बीच में प्रीमियम बंद करने पर क्या होगा, तीसरे या पांचवें साल में सरेंडर वैल्यू कितनी बनेगी और तमाम चार्ज काटने के बाद आपके हाथ में वास्तव में कितना पैसा आएगा। यही वो सच्चाई होती है जो मीठी बातों में अक्सर दब जाती है।

गारंटी शब्द सुनते ही सबसे ज्यादा सावधानी ज़रूरी है। इंश्योरेंस में गारंटी हमेशा शर्तों के साथ आती है—समय पर हर प्रीमियम, लंबा लॉक-इन और सीमित लचीलापन। वहीं मार्केट से जुड़े निवेश में “पक्की कमाई” जैसी बातों का कोई ठोस आधार नहीं होता। अगर पिच का लहजा ऐसा हो कि सब कुछ तय और जोखिम-मुक्त बताया जा रहा हो, तो समझ लें कि पूरी जानकारी सामने नहीं रखी जा रही। सही सलाह वही है जिसमें आपकी आय, मौजूदा कवर, कर्ज, लक्ष्य, निवेश अवधि और जोखिम उठाने की क्षमता पर बात हो। अगर बातचीत सीधे फॉर्म भरने पर आ जाए, तो सूटेबलिटी सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाती है।

पॉलिसी मिलने के बाद मिलने वाला फ्री-लुक पीरियड एक अहम सुरक्षा कवच है, लेकिन ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते। समय पर दस्तावेज़ पढ़े नहीं जाते, तारीख निकल जाती है और बाद में कटौतियां देखकर अफसोस होता है। इसे यह सोचकर न छोड़ें कि जल्दी साइन कर लेना ही सही फैसला है।

सबसे मजबूत हथियार साफ और लिखित जानकारी है। पॉलिसी साइन करने से पहले यह लिखित में मांगना बिल्कुल जायज़ है कि आप क्या खरीद रहे हैं, सालाना कुल खर्च कितना है, दूसरे या तीसरे साल में रुकने पर क्या परिणाम होंगे, भुगतान कब और कैसे शुरू होगा और सबसे बड़ा जोखिम क्या है। अगर इन सवालों पर बेचने वाला असहज हो जाए, तो वही संकेत काफी है। इंश्योरेंस में मिस-सेलिंग से बचने के लिए आपकी सतर्कता और सवाल पूछने की आदत ही सबसे बड़ा बचाव है।

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