भारत की ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री के लिए राहत की खबर चीन से आई है। लंबे समय से रुकी पड़ी सप्लाई के बीच चीन ने भारतीय कंपनियों और भारत में काम कर रही विदेशी कंपनियों को रेयर अर्थ मैग्नेट के निर्यात के लिए लाइसेंस देना शुरू कर दिया है। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एप्लीकेशंस को प्रोसेस करना शुरू कर दिया है और कुछ मामलों में मंजूरी भी दी जा चुकी है। भले ही यह शुरुआत धीमी मानी जा रही हो, लेकिन इंडस्ट्री के लिए यह संकेत काफी अहम है, क्योंकि इससे बीते महीनों से बनी अनिश्चितता अब धीरे-धीरे कम हो सकती है।
लाइसेंस पाने वाली कंपनियों में ऑटो कंपोनेंट और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी कई बड़ी यूनिट्स शामिल हैं। इनमें जय उशिन, जर्मन ऑटो कंपोनेंट मेकर Continental AG की भारतीय इकाइयां, महिंद्रा और मारुति सुजुकी से जुड़े सप्लायर्स के साथ-साथ होंडा मोटरसाइकिल और स्कूटर इंडिया के वेंडर्स भी हैं। अधिकारियों का कहना है कि भले ही फिलहाल मंजूरी सीमित स्तर पर मिल रही हो, लेकिन प्रक्रिया शुरू होना ही इस बात का संकेत है कि सप्लाई चैन को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश हो रही है।
रेयर अर्थ मैग्नेट आधुनिक इंडस्ट्री की रीढ़ माने जाते हैं। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की मोटर्स से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज और डिफेंस इक्विपमेंट तक इनका इस्तेमाल बेहद जरूरी है। खासकर EV सेक्टर में इन मैग्नेट्स की भूमिका सबसे अहम होती है, क्योंकि इन्हीं से हाई-परफॉर्मेंस और एनर्जी एफिशिएंट मोटर्स तैयार की जाती हैं। नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम और टेरबियम जैसे तत्वों से बने ये चुंबक मोटर को छोटा, हल्का और ज्यादा ताकतवर बनाते हैं, जिससे ईवी की रेंज और परफॉर्मेंस बेहतर होती है। इसके अलावा ICE गाड़ियों में भी सेंसर, डिस्प्ले और केटेलिक कन्वर्टर जैसे कई सिस्टम्स में इन मटेरियल्स का इस्तेमाल होता है।
दुनिया भर में रेयर अर्थ मटेरियल्स की माइनिंग और प्रोडक्शन पर चीन का दबदबा है। ग्लोबल माइनिंग में उसकी हिस्सेदारी करीब 70 फीसदी और प्रोसेसिंग व प्रोडक्शन कैपेसिटी में यह आंकड़ा 90 फीसदी तक बताया जाता है। 4 अप्रैल से चीन ने इन मैग्नेट्स के एक्सपोर्ट पर सख्ती बढ़ा दी थी, जिससे पूरी दुनिया की सप्लाई चेन प्रभावित हुई। कार, ड्रोन, रोबोट से लेकर मिसाइलों तक में इस्तेमाल होने वाले इन चुंबकों के शिपमेंट तक कई चीनी बंदरगाहों पर रोक दिए गए थे, जिसका असर भारत समेत कई देशों की इंडस्ट्री पर पड़ा।
इस पूरे घटनाक्रम की जड़ अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता ट्रेड विवाद है। बीजिंग ने अमेरिकी टैरिफ के जवाब में एक्सपोर्ट लाइसेंसिंग नियम सख्त किए, जिनके तहत चीनी एक्सपोर्टर्स को तभी क्लीयरेंस मिलता है जब इंपोर्टर यह गारंटी दे कि इन मटेरियल्स का इस्तेमाल डिफेंस या डुअल-यूज उद्देश्यों के लिए नहीं होगा। यह प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली रही, जिसके चलते सप्लाई में देरी होती रही और भारतीय कंपनियों की चिंता बढ़ती गई।
पिछले छह महीनों से भारत सरकार इस मुद्दे पर लगातार चीन के संपर्क में थी। जून में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के नई दिल्ली दौरे के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर को यह भरोसा दिया गया था कि रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर लगी पाबंदियों में ढील दी जाएगी। अब लाइसेंसिंग प्रक्रिया की शुरुआत को उसी बातचीत का नतीजा माना जा रहा है।
भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पहले ही सरकार को चेतावनी दे चुकी थी कि अगर चीन से सप्लाई लंबे समय तक रुकी रही, तो प्रोडक्शन शेड्यूल बिगड़ सकता है और खासतौर पर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का निर्माण बुरी तरह प्रभावित होगा। ऐसे में चीन की ओर से उठाया गया यह कदम फिलहाल राहत जरूर देता है, लेकिन इंडस्ट्री की नजर अब इस बात पर टिकी है कि यह प्रक्रिया कितनी तेजी से आगे बढ़ती है और सप्लाई कब पूरी तरह सामान्य होती है।