बिलासपुर के लिंगियाडीह में चल रहे आंदोलन ने मंगलवार को सियासी तापमान अचानक बढ़ा दिया, जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद धरना स्थल पर पहुंचे और प्रदेश सरकार पर तीखे शब्दों में हमला बोला। बघेल ने आरोप लगाया कि लिंगियाडीह बस्ती को उजाड़कर जिस गार्डन का निर्माण किया जा रहा है, वह विकास नहीं बल्कि लोगों के घर छीनने की राजनीति है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि क्या मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय वहां अपनी पत्नी के साथ टहलने आएंगे।
अपने भाषण में बघेल ने उप मुख्यमंत्री अरुण साव पर भी सीधा निशाना साधा। उन्होंने कहा कि दो साल में महज 950 मीटर सड़क बन पाई है और हर विभाग में काम ठप पड़ा है। लिंगियाडीह के लोगों को संबोधित करते हुए बघेल ने उन्हें डटे रहने का भरोसा दिलाया और कहा कि घर तोड़कर गार्डन बनाना किसी भी सूरत में न्यायसंगत नहीं है। पिछले 37 दिनों से जारी इस आंदोलन में उनकी मौजूदगी ने सियासी रंग और गहरा कर दिया।
यहीं नहीं, बघेल ने कथावाचकों पर भी फिर हमला बोला। उन्होंने धीरेंद्र शास्त्री और प्रदीप मिश्रा को निशाने पर लेते हुए कहा कि पहले चंदा लेना बंद करें, फिर जितना प्रवचन करना हो करें। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इन आयोजनों पर जनता के पैसे का दुरुपयोग कर रही है और विवादित बयानों पर चुप्पी साधे हुए है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने स्थानीय विधायक अमर अग्रवाल पर भी कटाक्ष किया। बघेल ने कहा कि मंत्री पद न मिलने के बाद विधायक अब “संतरी” बन गए हैं और घर से निकलना बंद कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं की हालत यही हो चुकी है और उप मुख्यमंत्री साव के किसी भी विभाग में ठोस काम दिखाई नहीं देता।
आंदोलन को और उग्र करने की सलाह देते हुए बघेल ने कहा कि धरना स्थल बदलकर कलेक्टर, निगम आयुक्त, एसपी और थानेदार के घर जाने वाले रास्तों पर बैठना चाहिए, ताकि अधिकारियों को जनता का दर्द समझ में आए। उन्होंने तमनार आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि अधिकारों के लिए संघर्ष जरूरी है।
इस पूरे घटनाक्रम पर बेलतरा विधायक सुशांत शुक्ला ने पलटवार किया। उन्होंने आरोप लगाया कि भूपेश बघेल शासकीय जमीनों की खरीद-फरोख्त में लिप्त रहे हैं और अब अवैध कब्जों को संरक्षण देने आए हैं। शुक्ला ने दावा किया कि जिस जमीन पर आंदोलन चल रहा है, वहां कांग्रेस पार्षद का व्यवसायिक संचालन है और कांग्रेस नेता ही सरकारी संपत्तियों को लूटते रहे हैं। उन्होंने आंदोलन के स्वरूप पर सवाल उठाते हुए कहा कि नाचा-गाना, भोजन और प्रसादी बांटकर भीड़ जुटाई जा रही है—यह किस तरह का आंदोलन है?
लिंगियाडीह का मुद्दा अब सिर्फ बस्ती बचाने का नहीं, बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच तीखी राजनीतिक जंग का अखाड़ा बन चुका है, जहां आरोप-प्रत्यारोप के बीच आम लोगों की जमीन और घर केंद्र में हैं।