निवेश की दुनिया में साल 2025 ने एक बड़ा संकेत दिया है—चांदी अब सिर्फ पारंपरिक कीमती धातु नहीं रही, बल्कि एक रणनीतिक एसेट के रूप में उभरकर सामने आई है। जहां लंबे समय से सोना सुरक्षित निवेश का पर्याय माना जाता रहा, वहीं 2025 में चांदी ने रिटर्न के मामले में उसे पीछे छोड़ दिया। भारत के Multi Commodity Exchange (MCX) फ्यूचर्स बाजार में चांदी ने एक साल में करीब 167 प्रतिशत का रिटर्न दिया, जबकि इसी अवधि में सोना लगभग 80 प्रतिशत तक ही बढ़ सका। अंतरराष्ट्रीय स्पॉट मार्केट में भी चांदी की कीमतों में लगभग तीन गुना तक उछाल देखा गया, जिसने वैश्विक निवेशकों का ध्यान खींचा।
इस तेज़ी के पीछे केवल सट्टेबाजी नहीं, बल्कि गहरे आर्थिक और औद्योगिक बदलाव काम कर रहे हैं। चांदी की सबसे बड़ी ताकत उसका दोहरा चरित्र है। एक ओर यह सोने की तरह मौद्रिक धातु है, जो अनिश्चित समय में सुरक्षित निवेश मानी जाती है, वहीं दूसरी ओर यह आधुनिक उद्योगों के लिए एक अहम कच्चा माल भी बन चुकी है। यही वजह है कि जब दुनिया ऊर्जा परिवर्तन और हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है, तो चांदी की मांग लगातार मजबूत होती जा रही है।
सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक व्हीकल, बैटरी टेक्नोलॉजी, सेमीकंडक्टर और पावर ग्रिड जैसे सेक्टरों में चांदी का उपयोग तेजी से बढ़ा है। इन क्षेत्रों का विस्तार केवल मौजूदा जरूरत नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों की वैश्विक नीति का हिस्सा है। इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों में नरमी और आर्थिक सुस्ती ने भी चांदी के पक्ष में माहौल बनाया है। जब अमेरिका समेत बड़े केंद्रीय बैंक दरें घटाते हैं, तो वास्तविक ब्याज दर नीचे आती है और निवेशक नकदी या बॉन्ड से निकलकर कीमती धातुओं की ओर रुख करते हैं। भू-राजनीतिक तनाव, युद्ध और व्यापारिक अनिश्चितताएं इस सुरक्षित निवेश की मांग को और तेज कर देती हैं, जिसका सीधा फायदा चांदी को मिला।
आपूर्ति पक्ष की चुनौतियां भी कीमतों को सहारा दे रही हैं। चीन जैसे देशों के निर्यात प्रतिबंध और अमेरिका की क्रिटिकल मिनरल नीतियों ने सप्लाई चेन पर दबाव बढ़ाया है। सीमित भौतिक स्टॉक और लगातार बढ़ती औद्योगिक मांग के कारण चांदी की उपलब्धता टाइट होती जा रही है, जिससे कीमतें ऊंचे स्तर पर टिके रहने की संभावना बढ़ती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब चांदी केवल चक्रवाती कमोडिटी नहीं रही, बल्कि नीतिगत फैसलों, वैश्विक राजनीति और पूंजी प्रवाह से गहराई से जुड़ चुकी है।
हालांकि, 2025 में सोने की तुलना में चांदी का रिटर्न कहीं ज्यादा रहा, लेकिन जोखिम पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। चांदी की कीमतें स्वभाव से ज्यादा उतार-चढ़ाव वाली होती हैं और वैश्विक आर्थिक संकेतों पर तेजी से प्रतिक्रिया देती हैं। इसलिए 2026 की ओर बढ़ते हुए निवेशकों के लिए जरूरी होगा कि वे चांदी को केवल तेज़ी के नजरिये से नहीं, बल्कि पोर्टफोलियो में संतुलन बनाने वाले एसेट के रूप में देखें। सही अनुपात और लंबी अवधि की सोच के साथ चांदी आने वाले समय में भी सोने को कड़ी टक्कर देती रह सकती है।