क्या 6 साल के हाइपरएक्टिव बच्चे का व्यवहार सामान्य है या कोई समस्या? पेरेंटिंग का पूरा समझने लायक स्पष्टीकरण

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हाइपरएक्टिविटी का असर केवल उसके “भागने-दौड़ने” तक सीमित नहीं रहता। यह उसकी एकाग्रता, आत्मनियंत्रण और आत्मविश्वास—तीनों पर सीधा प्रभाव डालता है। बच्चा पढ़ाई पर टिक नहीं पाता, भावनात्मक रूप से जल्दी असंतुलित हो जाता है, और सामाजिक तौर पर भी खुद को अलग पाता है। लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहे तो सीखने की क्षमता और आत्मविश्वास दोनों कमजोर हो सकते हैं, इसलिए इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।

ऐसे में सबसे जरूरी है कि पहले बच्चे का सही आकलन करवाया जाए। किसी चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट या पीडियाट्रिशियन से मुलाकात करें, क्योंकि वे क्वेश्चनेयर, ऑब्जर्वेशन और व्यवहार पैटर्न देखकर तय कर सकते हैं कि मामला सामान्य हाइपरएक्टिविटी का है या किसी डिसऑर्डर का संकेत है। अगर लक्षण हल्के हैं, तो घर में कुछ बदलाव करके और सही पेरेंटिंग स्ट्रेटेजी अपनाकर बच्चा बहुत जल्दी सुधार दिखा सकता है।

लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में माता-पिता की कुछ गलतियां स्थिति को और बिगाड़ सकती हैं। जैसे-बार-बार डांटना, चिल्लाना, तुलना करना, उसे परफेक्ट बनाने की कोशिश करना, छोटी-छोटी गलतियों पर शर्मिंदा करना या स्क्रीन टाइम को अचानक बहुत बढ़ा या बहुत कम कर देना। ये सारी चीजें बच्चे को भावनात्मक रूप से असुरक्षित बना देती हैं और उसका व्यवहार और ज्यादा अनियंत्रित हो सकता है।

हाइपरएक्टिव बच्चे को अनुशासन से ज्यादा समझ की जरूरत होती है। उसका दिमाग लगातार काम करता रहता है, इसलिए उसे शांत कराने की बजाय उसकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने की जरूरत है। प्यार, धैर्य, व्यवस्थित रूटीन, छोटे-छोटे टास्क, रुचि-आधारित गतिविधियाँ और बच्चों के हिसाब से बने लर्निंग पैटर्न उसकी मदद कर सकते हैं। सही गाइडेंस से ऐसा बच्चा न सिर्फ सामान्य तरीके से बढ़ सकता है, बल्कि अपनी ऊर्जा को रचनात्मकता, सीखने और आत्मविश्वास में बदल सकता है।

कुल मिलाकर, हाइपरएक्टिव बच्चा कोई समस्या नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और उर्जावान व्यक्तित्व होता है—जिसे बस थोड़ा अधिक धैर्य, समझ और सही दिशा की जरूरत होती है। यदि माता-पिता समय पर सही कदम उठाएं, तो यही ऊर्जा आगे चलकर उसकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है।

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