ऑनलाइन गेमिंग के नाम पर बच्चों से ठगी और ब्लैकमेल—14 लाख की जिंदगी खत्म, अक्षय कुमार की बेटी भी निशाने पर; साइबर लिटरेसी से कैसे बचें यह समझना अब बेहद ज़रूरी

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भारत में ऑनलाइन गेमिंग अब मनोरंजन का सबसे बड़ा मंच बन चुका है, लेकिन इसके साथ ही खतरनाक साइबर अपराधों की एक काली दुनिया भी तेजी से फैल रही है। लखनऊ में हुई हालिया घटना ने इस खतरे को बेहद दर्दनाक तरीके से सामने रखा, जब एक छात्र से गेमिंग आईडी अपग्रेड का लालच देकर ठगों ने 14 लाख रुपये ऐंठ लिए। अपनी हार को छिपाने और गेम में आगे बढ़ने के चक्कर में उसने पिता के अकाउंट से रकम भेजी और ठगा जाने के सदमे में उसने अपनी जान ले ली। जांच में सामने आया कि ठगों ने फर्जी गेमिंग आईडी, अपग्रेड और कॉइन्स का झांसा देकर एक मासूम को धीरे-धीरे जाल में फंसा लिया था।

केवल आम लोग ही नहीं, बल्कि सेलिब्रिटी परिवार भी इस अपराध के शिकार हो रहे हैं। पिछले महीने ‘साइबर अवेयरनेस मंथन 2025’ के दौरान अक्षय कुमार ने बताया कि ऑनलाइन गेम खेलते समय एक अनजान शख्स ने उनकी बेटी से न्यूड तस्वीरें मांग ली थीं। बच्ची ने तुरंत अपनी मां ट्विंकल खन्ना को बताया और मामला यहीं रुक गया, लेकिन यह घटना इस बात का प्रमाण है कि साइबर ठग अपनी पहुंच और हिम्मत दोनों में कितने बढ़ चुके हैं।

ऑनलाइन गेमिंग में सबसे ज्यादा सक्रिय टीनएजर्स और युवा हैं, और यही समूह साइबर अपराधियों का सबसे पहला निशाना बन रहा है। गेमिंग चैट, सोशल मीडिया और फर्जी ऐप्स के जरिए ठग ‘प्रो प्लेयर’, ‘आईडी सेलर’ या ‘अपग्रेडर’ बनकर सामने आते हैं। वे बच्चों को भरोसा दिलाते हैं कि वे उनकी गेमिंग आईडी अपग्रेड कर देंगे, उन्हें नए लेवल्स या अनलिमिटेड कॉइन्स दिला देंगे। टीनएजर्स उनके शब्दों में छिपे खतरे को समझ ही नहीं पाते और एक बार पैसे भेजते ही उनके फंसने का सिलसिला शुरू हो जाता है। कई बार गिफ्ट कार्ड या चीट कोड बेचे जाते हैं, जो असल में फर्जी होते हैं और कभी काम नहीं करते।

भारत में यह स्कैम इसलिए तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि गेमिंग एप्स के सब्सक्रिप्शन और डिजिटल पेमेंट बेहद आसानी से उपलब्ध हैं। बच्चे अक्सर गेम में हारते-हारते अपग्रेड के चक्कर में फंस जाते हैं, और ठग फिशिंग लिंक भेजकर उनके मोबाइल से बैंक डिटेल्स चुरा लेते हैं। कुछ मामलों में पूरा डिवाइस ही हैक कर लिया जाता है।

टीनएजर्स इस अपराध का सबसे आसान शिकार इसलिए बनते हैं, क्योंकि उनकी उम्र में जीतने का उत्साह, दोस्तों से बेहतर बनने की चाह और अकेलापन उन्हें गेमिंग की दुनिया में ज्यादा खींचता है। ठग भी उन्हीं की भाषा और दोस्ती के अंदाज़ में बात करते हैं, जिससे बच्चा उन्हें अपना ‘ऑनलाइन साथी’ समझने लगता है। जब पैसे जाने लगते हैं, तो डर और शर्म के कारण वे परिवार को सच नहीं बताते और दूसरी जगह से उधार लेकर नुकसान की पूर्ति करने लगते हैं। आंकड़े बताते हैं कि ऑनलाइन गेमिंग में होने वाली साइबर ठगी के 70% शिकार 18 से 25 साल के युवा हैं।

स्कैम का तरीका लगभग हर बार एक जैसा होता है—ठग पहले दोस्ती करते हैं, फिर गेमिंग आईडी बेचने, अपग्रेड करने या रिवॉर्ड दिलाने का वादा करते हैं। बच्चा पैसे भेज देता है, लेकिन बदले में उसे न आईडी मिलती है, न अपग्रेड। कई ठग आईडी अपग्रेड के नाम पर बच्चों से असली अकाउंट का पासवर्ड मांग लेते हैं और फिर पूरी आईडी हैक कर लेते हैं। सोशल मीडिया ग्रुप्स पर फर्जी स्क्रीनशॉट दिखाकर भरोसा जीतना उनका आम हथकंडा है। छोटी रकम से शुरुआत करके धीरे-धीरे बड़ी रकम मांगना और आखिर में ब्लैकमेल शुरू कर देना—यह पूरी प्रक्रिया बच्चों को मानसिक रूप से तोड़ देती है।

ठगों के लिए UPI और वॉलेट ऐप्स सबसे आसान निशाना हैं। वे बच्चों को विश्वास दिलाते हैं कि पेमेंट भेजने पर उनका लेवल बढ़ जाएगा, जबकि सारा पैसा सीधे ठग के अकाउंट में जाता है। फेक पेमेंट गेटवे और फिशिंग ऐप्स का इस्तेमाल करके बैंक डिटेल्स चुराना आम बात है। यह सब इतना तेजी से होता है कि परिवार को अक्सर देर से पता चलता है।

पेरेंट्स के लिए सबसे बड़ा संकेत होता है बच्चों के व्यवहार में अचानक हुए बदलाव। अगर बच्चा फोन पर जरूरत से ज्यादा समय बिता रहा हो, देर रात तक जाग रहा हो, चिड़चिड़ापन बढ़ रहा हो, या पॉकेट मनी अचानक ज्यादा मांगने लगा हो, तो यह ऑनलाइन गेमिंग या साइबर फ्रॉड का शुरुआती संकेत हो सकता है। बैंक से अनजान ट्रांजैक्शन अलर्ट आना भी बड़ी चेतावनी है।

इस खतरे से बचने का मूल मंत्र है—साइबर लिटरेसी यानी डिजिटल साक्षरता। बच्चों को सिखाना जरूरी है कि ऑनलाइन गेम में अजनबियों से बात न करें, किसी भी संदिग्ध लिंक पर क्लिक न करें और डिजिटल पेमेंट सिर्फ आधिकारिक और जांचे-परखे चैनलों से ही करें। पेरेंटल कंट्रोल ऐप्स के जरिए फोन पर गेम की समय सीमा तय करना, बैंक अकाउंट पर ट्रांजैक्शन लिमिट लगाना और बच्चों से संवाद बनाए रखना बेहद जरूरी कदम हैं।

अगर किसी के साथ गेमिंग स्कैम हो जाए, तो घबराने के बजाय तुरंत बैंक को कॉल करके ट्रांजैक्शन ब्लॉक करवाएं और 1930 साइबर हेल्पलाइन पर संपर्क करें। साइबर सेल में शिकायत दर्ज करने से ठगों का पता लगाने और पैसे वापस मिलने की संभावना बढ़ जाती है। पुलिस और साइबर विशेषज्ञ डिजिटल सबूत खंगालते हैं, अकाउंट्स फ्रीज करवाते हैं और ठगों की लोकेशन ट्रैक करते हैं।

ऑनलाइन गेमिंग की लत भी एक तरह का डिजिटल नशा है, जो बच्चों की पढ़ाई, नींद और मानसिक स्वास्थ्य पर खतरनाक प्रभाव डाल सकता है। माता-पिता को बच्चों के लिए आउटडोर गतिविधियां बढ़ानी चाहिए और स्क्रीन टाइम पर स्पष्ट सीमा तय करनी चाहिए, ताकि बच्चे गेमिंग की दुनिया से बाहर आकर असल जीवन से फिर जुड़ सकें।

ऑनलाइन गेमिंग का खतरा अब एक सच्चाई है, इसलिए समय रहते डिजिटल समझ और सुरक्षा पर ध्यान देना ही बच्चों को सुरक्षित रखने का सबसे मजबूत तरीका है।

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